Sunday, July 4, 2010

लौटा दो..................

कुछ पुरानी किताबें लौटा दो
उन किताबों पे बनी तस्वीर लौटा दो
साथ लौटा दो वो कहानियाँ
जिन कहानियों में शेर और चूहों की थी दोस्ती
लौटा दो वो किस्से
जहाँ इमानदारी की सीख थी मिलती
वो रेत के महल, वो मिटटी के खिलौने लौटा दो
या मेरे कागज के हवाई जहाजों को, उड़ने का फिर एक मौका दो

कुछ अनजान से सवाल लौटा दो
मासूम से मेरे जवाब लौटा दो
छुट्टियाँ वो गर्मी की लौटा दो
वो जाड़े की अलाव लौटा दो

मेरा कुछ और भी था
जो खो गया था बड़े होने की होड़ में
कभी ज़िंदगी से कदम मिलाने
तो कभी उससे जीतने की दौड़ में
हो सके तो लौटा दो वो सुकून की नींद
जो आती माँ के गोद में
या फिर पिता के हौसला देते हाथ
जिन्हें पकड़ कर सीखा गिरकर संभालना हर बार

गर ये लौटा ना पाओ तो बस एक आरज़ू लौटा दो
कुछ खेलने कुछ जीतने की ख्वाहिश लौटा दो
साथ लौटा दो वो नादानी जो सिखाती थी साथ देना सिर्फ सच का
वो भोलापन जो बताता था फर्क अच्छे और बुरे का

वो मासूमियत जो मेरे चेहरे से खो गयी
और लौटा दो वो इंसानियत जो दिल के किसी कोने में सो गयी

--------------------------------- नीलाभ

--Expressions: There are somethings in life which are often missed as time passes by. One of them is the time when we grow up..... Everything during this period is the best of the things that just happen once in a lifetime and throughout the life we want them back.

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