सूरज मेरे सामने डूब रहा है
पेड़ों के पीछे कुछ छिप रहा है
नीचे पानी पर उसकी प्रतिमा दिख रही हैं
दूर क्षितिज पर उसकी लालिमा चमक रही है
दृश्य था वह अत्यंत मनोरम
प्रकृति की इस रचना के आगे कल्पनालोक का सौंदर्य भी था कम
अचानक मन में एक विचित्र प्रश्न आया
की अस्त का अर्थ है आखिर क्या?
सूर्य का ढलना है किसका प्रतीक?
क्या ये नहीं निराशा का प्रतीक?
अस्त से क्या प्रेरणा हम
जब ये करे ऐसा संकेत मानो सब कुछ हो रहा हो खत्म
जवाब की तलाश में मन ना जाने कहाँ भटकने लगा
दूर वहीँ सूरज डूबने लगा
मैं आत्ममंथन करने लगा
और अपने ही प्रश्नों में उलझने लगा
सूरज का डूबना नहीं है अंत का संकेत
इसके पीछे है नव सृजन का उद्देश्य
सूरज डूबते हुए करता है ये वादा सदा
की मैं लौट कर आऊंगा लेकर सवेरा नया
सूरज का जाना नहीं लाता है निराशा
अपितु करता है केवल इतना इशारा
की आनेवाली है एक नयी भोर
लेकर फिर नयी आशा
अस्त केवल इतनी प्रेरणा देता है
की हर अस्त के बाद पुनः उदय है
हर निराशा के बाद एक आशा है
हर प्रवास पे लौटने का एक वादा है
यही सोचते सूरज अब पूरा डूब चुका था
और मुझे मेरे प्रश्नों का सही उत्तर मिल चुका था
-------------------------------------------- नीलाभ
--Expressions: Written long back with a thought that even sunset can have different meaning other than just farewell.
bahut achi lines hain....mai bhi ek baar aisi hi topic pe poem likhne ki soch raha tha ..jb subah me niklte suraj ko dekh rha tha...bt phir kbhi itni subah uth hi nhi paya and inspiration khtm ho gyi ;)
ReplyDeleteThanks shadab:)
ReplyDeletewaise problem mere saath bhi wahi thi isliye to sunrise nahi sunset pe likh diya :P