आधी रात को दूर एक शहर..... कुछ सोता कुछ जागता सा है....
कुछ घर अँधेरे की आगोश में यूँ झिलमिलाते हैं
अंदर रहने वालों का हाल सा बता जाते है
कभी दूर एक सड़क भी दिखाई देती है
वहीँ लगी रौशनी से वो नहाई सी लगती है
हाँ वहीँ सड़क के किनारे कुछ साये भी हैं
सच कहूँ तो इंसान नहीं....... वो साये ही हैं
रात के अँधेरे में समा से जाते हैं वो साये
सडक पर फैली धुंध में खो से जाते साये
पूस की रात में एक झोंका हवा का चलता है
एक ठिठुरन सी मेरे अंदर भरता है
मैं फिर सड़क के किनारे उन सायों को देखता हूँ
उनके तन पर सिमटे कुछ कपड़ों को देखता हूँ
कपड़े नहीं.. चीथड़ों में लिपटे
उन शरीरों को भी ठिठुरते देखता हूँ
ज़िंदा रहने का संघर्ष कुछ और ज़ोर पकड़ता है
जीने की ख्वाहिश लिए एक साया और दम तोड़ता है
रात ने फिर इंसान से मुँह फेरकर किया जिंदगी से दगा है
मौत ने मुस्कुरा कर एक बेसहारे को साथ ले लिया है
पर इंसानों की बस्ती से आज कौन रुखसत हुआ है?
हौसले और संघर्ष से भरा मिटटी का एक और शरीर ढह गया है
और उज्जवल भविष्य का सपना लिए आँखें मूँद समाज सो गया है
-------------------------------- नीलाभ
--Expressions: Some varied thoughts, some varied feelings, some varied emotions, some varied truths and just an expression.
touchy lines....nice one...
ReplyDeleteThanks yaar.... was quite moved when I was imagining the lines.
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