Friday, March 26, 2010

कामयाबी....

कामयाबी की कीमत न पूछ उससे.....
जिसके क़दमों में ये रहती है हरदम
गर जाननी है इसकी अहमियत......
तो जान उससे जिसे है अपनी नाकामयाबी पे ग़म

गर जानना है की है फ़तेह क्या....
तो न पूछ उससे जो जीत के नशे में है मस्त
देख उस चहरे को....
जिसे मिली है मैदान-ऐ-जंग में शिकस्त

जीत की धुन उसके लिए सुख नहीं लाती....
हर सुरीली तान है उसके ज़ख्म हरे कर जाती
हर ख़ुशी उसकी हार है याद दिलाती....
हर दीवाली है उसके अरमानों को जलाती

हर बारिश है उसकी आँखों से नीर बहाती....
हर पल है वो जुड़ कर फिर से टूटता
पिछला कुछ वो चाह कर भी नहीं भूल पाता....
क्योंकि जीवन के हर मोड़ पे वो लोगों को है खुद पे हंसता पाता

ख़्वाबों की अहमियत न पूछ उससे....
जो इन्हें है पूरे होते देखता
गर जाननी है इनकी अहमियत.....
तो जान उससे जो टूटे ख़्वाबों के साथ है जीता

-------------------------------------------- नीलाभ

--Expressions: Depicts what victory is from perspective of a person who has struggled all his life for the same and yet lost it.

--This was one among my first poems written which was inspired, adapted and quite a lot translated from one of favourite poems "Success is counted Sweetest..." by Emily Dickinson.