Sunday, September 14, 2014

रास्ते.....

दिशाहीन सा खड़ा मैं चारो ओर रास्तों को देखता हूँ,
रास्ते जो अंतहीन से लगते हैं,
रास्ते जो किसी मंजिल का पता तो ज़रूर  बताते हैं,
पर खुद किसी भटके मुसाफ़िर से वहीं ठहर जाते हैं !!


जाने कितने अपनों को पास लाते हैं ये रास्ते,
हर उम्मीद को उसके दर तक पहुचाते हैं ये रस्ते
कभी बारातों के साथ भी नाच लेते हैं ये रास्ते,
विदा हुई डोली में  दुल्हन के आसुओं को पोछते हुए ये रास्ते
दीयों से सजते और कभी रौशनी से जगमगाए हुए ये रास्ते,
किसी गाँव को शहर से मिलाते हुए ये रास्ते
कभी भीड़ में खो भी जाते हैं ये रास्ते,
लेकिन हर रोज़ जाने कितने कदमों के साथ चलते हैं ये रास्ते !!


कभी लहू के रंगों से नहाए भी हैं ये रास्ते,
रंजिशों की खातिर इंसानी लाशों से ढके भी हैं ये रास्ते
मंदिरों मदरसों तक तो जाते हैं जाने कितने रास्ते,
कभी किसी काफ़िर को ख़ुदा तक क्यों नहीं लाते हैं ये रास्ते !!

बातें जाने कितनी की ... पर जवाब नहीं देते हैं ये रास्ते,
हादसों को बस खामोश देखते हैं ये रास्ते
मुझे बेज़ुबान होने का एहसास देते हैं ये रास्ते,
बस मेरी उम्र से कुछ ज्यादा लम्बे हैं ये रास्ते !!

---------------------------------------- नीलाभ

--Expressions: Ever tried standing at a lonely square and tried to look at the roads. Roads that go beyond your eyesight, Roads that each have a story to smile, a pain to share but yet those small tales are untold .... Sometimes I feel I am a meek spectator just like these roads, feeling everything yet failing to express...... An expression worth sharing.

काफिर = non- believer, atheist