Sunday, July 4, 2010

कुछ अलग से लोग हैं...

हाँ कुछ अलग से लोग हैं......
शहर भी कुछ अलग सा है....

चेहरों पे जाने कितने चेहरें
सच का रंग है कच्चा और झूठ के दाग हैं गहरे
जिंदगी को समझते हैं बिसात
.......................... हैं इंसानों को समझते मोहरे
भावनाओँ की ना थी कोई जगह, ना कोई काम है
फायदे का गर है सौदा, तो खुशी के भी दाम हैं
हाँ कुछ अलग से लोग हैं......
शहर भी कुछ अलग सा है....

खुदा के घर पे ठहरा है सन्नाटा
पर रस्ता जो बदल के देखा तो मयखानों में है भीड़
ऊँचे मकान तो है मगर
................. मिलता नहीं क्यों प्यार से भरा एक नीड़
इंसानीयत है अपाहिज यहाँ, और मासूमियत अनाथ है
पैमाने है मिल के छलकते, आंसू जो छलके तो देता नहीं कोई साथ है
हाँ कुछ अलग से लोग हैं......
शहर भी कुछ अलग सा है....

बदले सोच जैसे बदले है धूप
बदलती परिभाषाओं में सुंदरता भी है कुरूप
अस्मिता को मार स्वयं ठोकर
......................... नारी का है ये नया रूप
सड़कों के किनारे घुमते बच्चे , कुछ असहाय कुछ अधनंगे हैं
सादगी है मर चुकी और चेहरे बस दिखावों के रंगों से रंगे हैं
हाँ कुछ अलग से लोग हैं......
शहर भी कुछ अलग सा है....


---------------------------------------- नीलाभ


--Expressions: Times have changed, so have people or is this a different place with different people at different times.

नीड़ = Nest
अस्मिता = Dignity

साये की रात.........

आधी रात को दूर एक शहर..... कुछ सोता कुछ जागता सा है....
कुछ घर अँधेरे की आगोश में यूँ झिलमिलाते हैं
अंदर रहने वालों का हाल सा बता जाते है
कभी दूर एक सड़क भी दिखाई देती है
वहीँ लगी रौशनी से वो नहाई सी लगती है
हाँ वहीँ सड़क के किनारे कुछ साये भी हैं
सच कहूँ तो इंसान नहीं....... वो साये ही हैं
रात के अँधेरे में समा से जाते हैं वो साये
सडक पर फैली धुंध में खो से जाते साये

पूस की रात में एक झोंका हवा का चलता है
एक ठिठुरन सी मेरे अंदर भरता है

मैं फिर सड़क के किनारे उन सायों को देखता हूँ
उनके तन पर सिमटे कुछ कपड़ों को देखता हूँ
कपड़े नहीं.. चीथड़ों में लिपटे
उन शरीरों को भी ठिठुरते देखता हूँ
ज़िंदा रहने का संघर्ष कुछ और ज़ोर पकड़ता है
जीने की ख्वाहिश लिए एक साया और दम तोड़ता है
रात ने फिर इंसान से मुँह फेरकर किया जिंदगी से दगा है
मौत ने मुस्कुरा कर एक बेसहारे को साथ ले लिया है
पर इंसानों की बस्ती से आज कौन रुखसत हुआ है?

हौसले और संघर्ष से भरा मिटटी का एक और शरीर ढह गया है
और उज्जवल भविष्य का सपना लिए आँखें मूँद समाज सो गया है


-------------------------------- नीलाभ


--Expressions: Some varied thoughts, some varied feelings, some varied emotions, some varied truths and just an expression.

लौटा दो..................

कुछ पुरानी किताबें लौटा दो
उन किताबों पे बनी तस्वीर लौटा दो
साथ लौटा दो वो कहानियाँ
जिन कहानियों में शेर और चूहों की थी दोस्ती
लौटा दो वो किस्से
जहाँ इमानदारी की सीख थी मिलती
वो रेत के महल, वो मिटटी के खिलौने लौटा दो
या मेरे कागज के हवाई जहाजों को, उड़ने का फिर एक मौका दो

कुछ अनजान से सवाल लौटा दो
मासूम से मेरे जवाब लौटा दो
छुट्टियाँ वो गर्मी की लौटा दो
वो जाड़े की अलाव लौटा दो

मेरा कुछ और भी था
जो खो गया था बड़े होने की होड़ में
कभी ज़िंदगी से कदम मिलाने
तो कभी उससे जीतने की दौड़ में
हो सके तो लौटा दो वो सुकून की नींद
जो आती माँ के गोद में
या फिर पिता के हौसला देते हाथ
जिन्हें पकड़ कर सीखा गिरकर संभालना हर बार

गर ये लौटा ना पाओ तो बस एक आरज़ू लौटा दो
कुछ खेलने कुछ जीतने की ख्वाहिश लौटा दो
साथ लौटा दो वो नादानी जो सिखाती थी साथ देना सिर्फ सच का
वो भोलापन जो बताता था फर्क अच्छे और बुरे का

वो मासूमियत जो मेरे चेहरे से खो गयी
और लौटा दो वो इंसानियत जो दिल के किसी कोने में सो गयी

--------------------------------- नीलाभ

--Expressions: There are somethings in life which are often missed as time passes by. One of them is the time when we grow up..... Everything during this period is the best of the things that just happen once in a lifetime and throughout the life we want them back.

ज़िंदगी – कर एक वादा

ए ज़िंदगी कभी तो कर साथ देने का एक वादा
देख तेरे हर दगा को मुस्कुरा के सहा है
देख तेरे हर सितम को है सीने से लगाया
तेरे हर दर्द को है होंठों पे सजाया
तेरे हर आँसू को है पलकों पे छिपाया
फिर भी दिल में है कुछ ऐसा इरादा
हर गम से है मुस्कुराने का वादा
पर अब तू भी तो कर इतनी रहमत
की ज़िंदगी, ज़िंदगी रहे, ना बन जाए उल्फत
ज़ख्म इतना ही रहे, की नासूर न बन जाए
जीना भी कुछ ऐसा ही रहे, की कसूर न बन जाए

------------------------------------------ नीलाभ

--Expressions: Just another expression depicting pain.

Saturday, July 3, 2010

अस्त का अर्थ

सूरज मेरे सामने डूब रहा है
पेड़ों के पीछे कुछ छिप रहा है
नीचे पानी पर उसकी प्रतिमा दिख रही हैं
दूर क्षितिज पर उसकी लालिमा चमक रही है

दृश्य था वह अत्यंत मनोरम
प्रकृति की इस रचना के आगे कल्पनालोक का सौंदर्य भी था कम
अचानक मन में एक विचित्र प्रश्न आया
की अस्त का अर्थ है आखिर क्या?

सूर्य का ढलना है किसका प्रतीक?
क्या ये नहीं निराशा का प्रतीक?
अस्त से क्या प्रेरणा हम
जब ये करे ऐसा संकेत मानो सब कुछ हो रहा हो खत्म

जवाब की तलाश में मन ना जाने कहाँ भटकने लगा
दूर वहीँ सूरज डूबने लगा
मैं आत्ममंथन करने लगा
और अपने ही प्रश्नों में उलझने लगा

सूरज का डूबना नहीं है अंत का संकेत
इसके पीछे है नव सृजन का उद्देश्य
सूरज डूबते हुए करता है ये वादा सदा
की मैं लौट कर आऊंगा लेकर सवेरा नया

सूरज का जाना नहीं लाता है निराशा
अपितु करता है केवल इतना इशारा
की आनेवाली है एक नयी भोर
लेकर फिर नयी आशा

अस्त केवल इतनी प्रेरणा देता है
की हर अस्त के बाद पुनः उदय है
हर निराशा के बाद एक आशा है
हर प्रवास पे लौटने का एक वादा है

यही सोचते सूरज अब पूरा डूब चुका था
और मुझे मेरे प्रश्नों का सही उत्तर मिल चुका था

-------------------------------------------- नीलाभ

--Expressions: Written long back with a thought that even sunset can have different meaning other than just farewell.