Monday, October 12, 2015

दौड़


आगे बढ़ने की दौड़ थी
हम भी साथ दौड़ते रहे
जाने कितनों से आगे दौड़ गए
जाने कितने हमसे आगे निकल गए

सालों तक ये सिलसिला चलता रहा
जो समझदार थे कहीं रुक कर बैठ गए
जो नासमझ थे उन्हें रुकता देख ठिठके तो ज़रूर
लेकिन फिर इससे हाथ आया मौका समझ
हंस कर और तेज़ी से आगे निकल गए
हम भी नासमझों की टोली में थे
रुकने का ख्याल राह के किनारे रख
भीड़ के साथ दौड़ते रहे

धीरे धीरे और आगे बढे
तो एक शक सा होने लगा
जो जितना दूर निकल आया था
वो उतना अकेला दिखने लगा था
मिलती तो थी उन्हें शोहरतों की बारिशें
पर साथ कोई था तो बस ख्वाहिशें

अपनी नासमझी पे अब हुआ यकीन जो हमें
हम भी दो पल के लिए यूँ ही थम से गए
आखिर इस दौड़ में कितना कुछ राह में ही हमनें खो दिया
ये सोचने जो पलकें बंद की तो उन्हें आंसुओं ने भिगो दिया

नमी सी आँखों में रख वापस पलटकर जो देखा
खुशियाँ तो सारी वहीँ उसी राह पे पड़ी थीं
जिसकी तलाश में हम आगे दौड़ते रहे
कमबख्त वो ज़िन्दगी दबे पाँव हमारे पीछे खड़ी थी ।।

---------------------------------------- नीलाभ

Expression :- Sometimes we forget and often ignore happiness, while chasing some  milestones that are a part of life but they ain't make life.
This expression suggests that all those years when you chased life for glory and luxury, you ignored the true purpose of life, to be happy.