Sunday, January 30, 2011

मकान एक पुराना सा

बड़ी इमारतों के बीच एक मकान कुछ पुराना सा है....
बेजान तहजीबों के शहर में जैसे भटका कोई मुसाफ़िर बेग़ाना सा है....

कभी ऊंचे पर्वत सी शिलाओं को देख मेरा मकान पुराना घबराता सा है
कभी इन सजीले नव आगंतुओ को देख कुछ शर्माता सा है
नए नवेले युवाओं को देख अपनी उम्र छुपाता सा है
वैभव देख उनकी अपना सर झुकाता सा है

कभी अपनी जीर्ण अवस्था पर मन ही मन आँसू बहाता सा है
जीवन के बिखरे पालो को समेट फिर भरमाता सा है
नव वधुओं के स्वागत को कर स्मरित लजाता सा है
अपने आँगन में खेले बच्चों को कर याद मुस्काता सा है

याद करता है रिश्तों की पूँजी को बढ़ते हुए
दादा को पोते के साथ फिर बच्चा बनते हुए
माँ की लोरी सुन खुद भी सो जाता सा है
पिता के कंधो पे नयी पीढ़ी को बिठाता सा है

होली पे प्रेम के रंगों में भर जाता सा है
दीवाली पे झिलमिल जगमगाता सा है
तीज पे हरियाली की समृद्धि दे जाता सा है
चौथ पे चाँद को आँगन में उतार लाता सा है

आगे बढ़ने की होड़ में... हाँ आज पीछे रह जाता सा है
पर याद कर अपने अतीत को गर्व से हर्षाता सा है

---------------------------------------- नीलाभ


--Expressions: With change in times somethings still remain the same.... Lets accept those unchanged ones and give them the respect they deserve.... because they are the roots to where we actually belong.

तहजीबों = manners/culture
आगंतुओ = visitors