Friday, April 2, 2010

तलाश......

क्या जाने मैं ढूँढता हूँ..........
..........इक बुझी सी राख में
मिल जाए कोई ख्वाहिश........
...जल चुके अरमानो की ख़ाक में
ज़िन्दगी के सेहरा में खो गया हूँ इस कदर
की वापस चलता हूँ कुछ पड़ाव...
.... अपनी पहचान की तलाश में


क्या जाने मैं ढूंढता हूँ........
.......सन्नाटे के हर पयाम में
ढूंढता हूँ मैं तरन्नुम.........
.........खामोशी के बाज़ार में
हो गयी है अब खामोशियों की आदत इस कदर
की सुन रहा हूँ अब हर आहट....
.....अपनी आवाज़ की तलाश में


क्या जाने मुझे मिलता है......
..दर्द के बीच भी उस मुस्कान में
है यही तो वो इंसानी जज्बा....
.....जी रहा हूँ जिसकी आस में
वर्ना दुनियावालों ने तो मिटा दी है मेरी शख्शियत इस कदर
की भीड़ से रोज़ गुज़रता हूँ....
....खुद को पाने की तलाश में




-------------------------------------------- नीलाभ

--Expressions: This poem was written just to introspect about some beautiful feelings that came to me, or went away from me in this wonderful journey called........ life.


सेहरा = desert
पयाम = message
तरन्नुम = melody