Friday, June 2, 2023

मैं वृक्ष पुराना..

 मैं वृक्ष पुराना इस जंगल का.. 

कितने वसंत कितने पतझड़ का..


मेरे कोपलों पे हैं ..

कितनी तितलियां मंडराई,

मेरे कंधो पे है..

कभी गिलहरियां भी सुस्ताई,

मेरे बाजुओं पे चढ़ने..

रीछों ने नख हैं चुभाए,

सर्पों ने कर मेरा आलिंगन.. 

मुझ पर विष भी हैं बरसाए,

फिर भी हर आगंतुक से.. की है मैंने यारी

पर नियति का खेल है ये..  बिछड़े सभी हैं बारी बारी ॥


एक पतझड़ की बात सुनाऊं..

कुछ हिरणों के छौने आए,

भर कर जाने.. कितने कुलांचे,

ठहर चुके थे.. थक कर सारे,

छांव में मेरी.. तनिक वो ठहरे,

प्रेम से मेरी.. ओर निहारे,

कुछ पल ठहरे.. कुछ पल ठिठके,

फिर हवा से वापस.. दौड़ लगाई,

हां नियति का खेल यही है..  बिछड़े सभी हैं बारी बारी ॥

मैं वृक्ष पुराना इस जंगल का ..

कितने वसंत कितने पतझड़ का ॥


दूर खड़े कुछ वृक्ष पुराने..

मुझसे बड़े वो हैं जो सयाने,

हाथ उठा.. आशीष वो देते, 

कभी गरज के.. सीख वो देते,

वो कहते.. ये काल का रथ है,

तेरे पास भी.. देख तो सब है,

पर रुक कर कुछ.. ना रह पाएगा,

हर स्नेह का बंधन.. हाँ खुल जाएगा,

जो प्रेम से आज पास आया है..

वो प्रेम ही देकर कल जाएगा,

मैं शीश नवा कर सब सुनता हूं..

फिर आंख मूंद कर मैं कहता हूं,

मैं वृक्ष पुराना इस जंगल का..

कितने वसंत कितने पतझड़ का ॥


------------------------------------------ नीलाभ

Expression - As I turn a year older and gradually enter in the second half of this journey called life. I try to juggle my bitter sweet experiences, balncing between them, adjusting to new and holding to the old.. and living this journey of life. 

कोपलों = Buds
रीछों = Bear
आलिंगन = Embrace
आगंतुक = Guest
छौने = Fawn

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