Friday, October 9, 2020

शहर..

ये शहर अनजाना सा है,
        कुछ जाना पहचाना भी है,
ये तो जानता हूँ मैं,
         एक दशक से मैं इसमें बसता हूँ,
पर ये ना जाना कभी,
          हौले से छुपकर ये भी मुझमें बसता है ।।

कभी मैं इससे, ख़फ़ा सा हो जाता हूँ
पूछता भी हूँ, कि क्यूँ तू वैसा नहीं है
जो देखते ही तुझसे,
इक इश्क़ सा हो जाये ।
नाराज़ भी होता हूँ इससे,
जो मेरे ख्वाबों का आकाश, कम दिखता है यहां से ।।

कभी जो रास्ते, सख़्त से हो जाते इस शहर के,
और ठोकरें खाकर, मेरे कदम हैं थक जाते,
आँसुओं के साथ, जो मिट्टी आँखों में है भर जाती,
तो कोस भी लेता हूँ, इसे ही जी भर के ।।

ये शायद चुपचाप, सुनता है मेरे ताने,
मेरी खामोशी, मेरी आवाज़, मेरे तराने, 

मैं याद करता हूँ, उन अंधेरी रातों को भी
जब हौसलों के टूट जाने पर,
एक टक देखता था मैं,
अकेले उस सूने आसमान की ओर,
तब ये शहर ही तो था,
जो करता था बात, मुस्कुराकर मेरी ओर ।।

मेरे कंधे पर हाथ रखकर,
संभाला भी तो था इसी ने,
मेरे लड़खड़ा कर गिरने पर, 
आँसू भी गिराए थे, शायद इसी ने ।।

हर सुबह ये शहर ही तो है, जो कहता है मुझसे,
दौड़ जब तक तेरे पाँव के छाले, खुद तेरा रास्ता ना बता दें,
कि बदलता तो रहेगा ही, पता मंज़िलों का तेरी
तू बस रुक ना जाना, राहों में कहीं
और पलकें जो हो जाएं, ग़र बोझिल तेरी 
थक कर सो भी जाना, मेरी बाहों में कभी

ये शहर, 
जो अनजाना सा लगता था कभी,
हाँ, 
अब जाना पहचाना लगता है यूँ ही ।।

------------------------------------------ नीलाभ

Expression - When I moved to this new city a decade ago, I had nothing but complaints. Year after year, those complaints grew but somewhere this city also gave me it's moments of love and hope. Deep down this is my version of Frank Sinatra's 'This town'

The thought behind this expression was inspired from a moment captured by a wonderful photographer and my dear friend Ankit Trivedi. All credits to him for the original thought.
Check out his work at his instagram handle @trivedi.jpeg

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